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Kamleshdatta Tripathi | | lecture Part1 | आगम:परम्परा सनातन धर्म | कमलेशदत्त त्रिपाठी | शैलेंद्र कुमार शर्मा

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Published 14 Feb 2017

आगम परम्परा और वर्तमान सनातन धर्म पर एकाग्र ख्यातिलब्ध मनीषी गुरुवर आचार्य कमलेश दत्त त्रिपाठी का व्याख्यान अत्यंत स्मरणीय रहा। आचार्य त्रिपाठी इस विषय पर महत्त्वपूर्ण व्याख्यान और उनसे संलाप का स्मरणीय मौका मिला। उज्जयिनी की रचनात्मक धरोहरों के बीच नवस्थापित त्रिवेणी संग्रहालय में सम्पन्न इस व्याख्यान में आचार्य त्रिपाठी ने निगमागममूलक भारतीय संस्कृति और धर्म की सरस व्याख्या की। उन्हें पिछले तीन दशकों से वैदिक वाङ्मय, आगम, भारतीय नाट्य एवं कला चिंतन परम्परा पर सुनने और संवाद का अवसर मिलता रहा है। इस बार उनके व्याख्यान में सनातन के समकाल की कई छबियाँ उभरीं, जो विचारोत्तेजक और मननीय भी हैं। शास्‍त्र और लोक के अन्तस्सम्बन्धों की चर्चा करते हुए आचार्य कमलेशदत्त त्रिपाठी मानते हैं कि लोक और शास्‍त्र में एक सतत संवाद और आदान - प्रदान का संबंध है। जो कुछ लोक में है, वही कभी शास्त्र बनता दिखता है और जो कुछ शास्‍त्रीय रूप है, वह कालान्तर में शास्‍त्रीय न रहकर लोक में जीवित दिखता है। जब शास्‍त्रीय या अभिजात संस्कृति मुरझाने लगती है या मलिन हो जाती है तो लोक से जीवन रस पाती है। ठेठ वन्य और ग्राम्य संस्कृति का विलक्षण अनुशासन है। आश्चर्यजनक रूप से शास्त्र का संप्रवाह वहां जागरूक दिखता है। लोक और शास्‍त्र के मध्य विग्रह और विरोध कम, संवाद और विनिमय का संबंध अधिक है। उज्जैन स्थित त्रिवेणी कला एवं पुरातत्व संग्रहालय में सम्पन्न इस व्याख्यान का पहला भाग प्रस्तुत है: प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा Prof Shailendrakumar Sharma संग Sunil Mishr ji भारतीय संगीत, नृत्य, नाट्य और लोक संस्कृति से जुड़े वीडियो के लिए यूट्यूब चैनल पर जाएँ /c/ShailendrakumarSharma

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